ऑर्गेनिक प्रोडक्ट और आयुर्वेदिक प्रोडक्ट्स में क्या अंतर् होता है

ऑर्गेनिक प्रोडक्ट और आयुर्वेदिक प्रोडक्ट्स में क्या अंतर् होता है 

काफी कॉमन question होता है  ये भी, कि आयुर्वेदिक प्रोडक्ट्स में और आर्गेनिक प्रोडक्ट्स में क्या अंतर् होता है अगर हम आयुर्वेदिक प्रोडक्ट्स की बात करे तो आयुर्वेदिक प्रोडक्ट्स में वह सब प्रोडक्ट होते हैं जो आयुर्वेदिक मैन्युफैक्चरिंग लाइसेंस के अंदर बने होते हैं। उनको  आयुर्वेदिक मैन्युफैक्चरिंग लाइसेंस लेकर  एक आयुर्वेदिक मेडिसिन के अंतर्गत  बनाया जाता है। चाहे लिक्विड फॉर्म में हो, टेबलेट फॉर्म में हो, क्रीम फॉर्म में हो। किसी भी फॉर्म में हो। जो एक आयुर्वेदिक मेडिसिन के तौर पर बनाया गया है। उनको हम आयुर्वेदिक प्रोडक्ट्स कहते है। 

आर्गेनिक प्रोडक्ट्स एक टर्म होती है। आयुर्वेदिक प्रोडक्ट्स भी उसके अंदर आ सकते हैं। आर्गेनिक प्रोडक्ट्स में क्या होता है कि जिनको बनाने के लिए बिल्कुल भी केमिकल का उपयोग नहीं किया गया हो, चाहे वो प्रेज़रवेटिव हो या फिर प्रोसेस में उपयोग की गयी कोई भी फार्मूलेशन में एक भी सिंगल केमिकल इंग्रेडिएंट न हो । पुरे तौर पर वो हर्ब्स से या मिनरल से जो भी nature से मिलती है, एग्जैक्ट नेचर से प्राप्त की गई चीज़े है उन से जो प्रोडक्ट बनाया जाता है, वो आर्गेनिक प्रोडक्ट होता है । 

वो किसी भी रूप में हो सकता है जरूरी नहीं है वो आयुर्वेदिक के अंदर ही बनता है वो फ़ूड के अंदर भी बन सकता है वो कॉस्मेटिक के अंदर भी बन सकता है। यह किसी दूसरे फॉर्म में भी बन सकता है लेकिन उसमे किसी भी तरह का केमिकल उपयोग नहीं होता चाहे वो प्रेज़रवेटिव लगा लो या किसी दूसरे तौर  पर लगा लो, स्टेबलाइजर लगा लो, additive लगा लो। 

क्युकी सबमे निचे एक्ससपिएंट्स लिखे होते है क्युकी जो मुख्य इंग्रेडिएंट्स होते है वो किसी भी फार्मूलेशन में बहुत थोड़े होते है। उसके अलवा उसको बल्क बनाने के लिए, एक पूरी की पूरी फॉर्मूलेशन बनाने के लिए, हमे बहुत सारे मटेरियल की जरूरत होती है। 

उसमे प्रेज़रवेटिव का उपयोग होता है, कि जो किसी भी प्रोडक्ट की सेल्फ लाइफ होती है, उसके अंदर वो प्रोडक्ट को बचा कर रखता है, stabilizer उसको stable करके रखता है। बल्किंग एजेंट का काम का होता है कि suppose करो कि आपकी 500 mg टेबलेट है, उसमे से आपका 50mg का कोई एक्टिव इंग्रेडिएंट है जिसका  रिजल्ट है जो कि जो थेराप्यूटिक, थेराप्यूटिक तो थोड़ाअलग रास्ते चला जायेगा। मेडिसिन में चला जाएगा। उसका कोई इफ़ेक्ट है generally, जैसे हम नीम का ही ले लेते है  नीम को हम उपयोग कर रहे है उसकी एक टेबलेट बनाते हैं तो उसमें 500 एमजी टेबलेट, जो 250 mg है वो नीम है, पाउडर फॉर्म में या एक्सट्रेक्ट फॉर्म में, या जिस भी फॉर्म में है, remaining जो हमारी टेबलेट बनानी है वह कम से कम 500 एमजी की बनी है। तो जो 500 mg का हमने एक्स्ट्रा मटेरियल लेना है वो  बल्किंग अर्जेंट में आता है।वो एक्ससपिएंट्स में आता है तो वो भी केमिकल नेचर का नहीं होना चाहिए वो भी  नेचुरल फॉर्म का होना चाहिए। तब जाकर वो जो टैबलेट है, वह पूरी ऑर्गेनिक बनेगी। तो एक प्रोडक्ट तभी आर्गेनिक बनता है

 जब जो उसके एक्टिव इंग्रेडिएंट्स है वो भी हर्बल नेचर के हो, मिनरल नेचर के, जो नेचर से मिलती है चीज़े उनके हो और स्टेबलाइजर है जो प्रिजर्वेटिव है जो बल्किंग एजेंट है, वो सभी वो उपयोग किये गए है जो केमिकल नेचर के नहीं है जो हमे नेचर से मिलते है, उनको नेचुरल फॉर्म में ही उपयोग किया गया है तभी जाकर एक प्रोडक्ट आर्गेनिक बनता है 

लेकिन generally क्या होता है जो प्रेज़रवेटिव होते है वो ज्यादतर 99% प्रोडक्ट्स में , चाहे वो अपने आप को आर्गेनिक क्लेम करते हो, चाहे हर्बल क्लेम करते हो, कुछ भी क्लेम करते हो, वो उनमे केमिकल नेचर के होते है, और वो allowed भी होते है तो यह अंतर् आपको समझना जरूरी है।  

आयुर्वेदिक मेडिसिन में और ऑर्गेनिक जो प्रोडक्ट होते है उनमे बहुत अंतर् होता है आयुर्वेदिक प्रोडक्ट्स भी आर्गेनिक नेचर के हो सकते है अगर वो उन सब चीज़ो को, उन स्टैंडर्ड्स को फॉलो करे जो आर्गेनिक प्रोडक्ट्स के लिए गाइडेड होते है  या आर्गेनिक प्रोडक्ट के लिए निर्धारित होते है

 

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